कभी सपनों मे अपनों के सपनों को जरा सहेजना तो! हो सकता है़! कभी महसूस न किया तुमने होगा जो समझ आए वो! यूँ बन वाचाल खुदा को बेवजह न तकलीफ़़ में डाल! दे सकता है! ये पुरे जमाने का दर्द; ज़रा समझ; न बन अतफ़ाल!